मंगलवार, 27 अगस्त 2019

समकालीन भारत के महान वैज्ञानिक

सापेक्षता का सिद्धांत और भारतीय मनीषि...

विश्व में अल्बर्ट आइंस्टीन की General Theory of Relativity (GTR) की सौंवी वर्षगांठ मनाई जा चुकी.  इस सन्दर्भ में श्रीमान् सुधीन्द्र कुलकर्णी जी ने महाराष्ट्र सरकार को बिज़नेस स्टैण्डर्ड अखबार के हवाले से पत्र लिखा की मुंबई समेत पूरा राज्य आइंस्टीन की GTR के सौ वर्ष पूरे होने पर ‘जश्न’ मनाये और मुंबई की सड़क का नाम आइंस्टीन के नाम पर कर दिया जाए. जगदीश चन्द्र बसु की जन्मतिथि 30 नवंबर को Observer Research Foundation ने टाटा इंस्टिट्यूट के मूर्धन्य भौतिकशास्त्री प्रो० स्पेंटा वाडिया साहब को बुला कर आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ जनरल रिलेटीविटी पर लेक्चर का आयोजन भी किया. लेकिन ये विद्वान् लोग उन्हें भूल गए जिनकी बदौलत इस देश में GTR जैसी जटिल थ्योरी पर शोध होता है और आज भारत सैद्धांतिक भौतिकी (Theoretical Physics) के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी है. मुद्दा ये है की आप अपनी पहचान उत्सव के सापेक्ष रखते हैं या उपलब्धियों के; बाकि आइंस्टीन का नाम हर वो व्यक्ति जानता है जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण के निरपेक्ष साम-दाम की कल्पना में जीता है. मैं आपको तीन महान भारतीय वैज्ञानिकों के बारे में बताना चाहता हूँ जिनमें से एक मराठी थे, एक गुजराती और एक बंगाली.

सबसे पहले इस थ्योरी का एक अति संक्षिप्त परिचय.

नवम्बर सन 1915 में आइंस्टीन ने ‘सापेक्षता का सामान्य सिद्धांत’ प्रतिपादित किया था. इससे दस वर्ष पूर्व 1905 में आइंस्टीन ने ‘सापेक्षता का विशिष्ट सिद्धांत’ (Special Theory of Relativity) भी दिया था जिस पर आगे चलकर परमाणु ऊर्जा संयंत्र और अस्त्र दोनों बने. हिंदी में General शब्द का अनुवाद ‘सामान्य’ कर दिया जाता है लेकिन इन दोनों ही सिद्धांतों ने ब्रह्माण्ड और पदार्थ को देखने की दुनिया की सामान्य समझ को पूरी तरह से बदल दिया था. हम जिस ब्रह्माण्ड को अपरिमित समझते थे GTR ने उस सोच को बदल दिया और ऐसे समीकरण निकले जिनसे पता चला ब्रह्माण्ड की भी सीमांए हैं. आइंस्टीन ने गुरुत्व (Gravity) को मात्र खींचने-धकेलने वाला एक ‘बल’ नहीं बल्कि वृहद् ज्यामितीय संरचना के रूप में समझाया और प्रमेयों के माध्यम से सिद्ध किया कि जैसे एक फैले हुए चादर पर भारी गेंद डालने से वो सिकुड़ जाता है वैसे ही पदार्थ अपने द्रव्यमान से दिक्-काल (Space-Time) को विकृत करता है. यही ज्यामिति गुरुत्वाकर्षण के लिए जिम्मेदार है. इसी सिद्धांत की बदौलत हमनें विशाल द्रव्यमान वाले तारों, मंदाकिनियों का अध्ययन भी किया और आज का ‘मॉडर्न कुतुबनुमा’ यानि GPS भी बनाया. हमें ब्लैक होल, क्वेसर, पल्सर जैसी विचित्र वस्तुएं भी ज्ञात हुईं और हम ये भी जान पाए की गुरुत्वाकर्षण बल ‘तरंगों’ के रूप में विद्यमान है जिन्हें Gravity Waves कहा जाता है. कालांतर में ‘ब्रह्मान्डिकी’ या Cosmology एक विषय के रूप में परिणत हुआ जिसमे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को एक entity मान कर अध्ययन किया जाता है. ये विषय बहुत विस्तृत और जटिल है. बहुत सारी बातें हैं इस पर चर्चा फिर कभी.

भारतीय वैज्ञानिकों में खगोलशास्त्री प्रो० जयंत विष्णु नार्लीकर (JVN) एक बड़ा नाम हैं. दुःख की बात है की उनके पिताजी प्रो० विष्णु वासुदेव नार्लीकर (VVN) को बहुत कम लोग जानते हैं. जैसे एक बार हरिवंशराय बच्चन को क्षोभ हुआ था जब लोग उन्हें इसलिए जानने लगे थे क्योंकि उनके सुपुत्र अमिताभ स्टार बन गए थे. खैर. प्रो० वी० वी० नार्लीकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर थे. उनका जन्म कोल्हापुर, महाराष्ट्र में 1908 में हुआ था और उच्च शिक्षा कैंब्रिज में हुई थी. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्होंने Sir Arthur Eddington के सानिध्य में काम किया था. आप जानते हैं Eddington कौन थे? जब आइंस्टीन ने थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी पर पेपर प्रकाशित किया था तो कहा जाता है कि उस समय विश्व में इस थ्योरी को समझने वाले कुल ‘तीन’ लोगों में से एक Eddington थे! काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक महाप्राण महामना मालवीयजी ने Eddington को पत्र लिखा और उनके  प्रयासों के फलस्वरूप 1932 में VVN जब केवल 24 वर्ष के थे और पीएचडी पूरी भी नहीं की थी, तब उन्हें गणित विभाग का अध्यक्ष बनाया गया. अब ये जरुरी नहीं है की कोई वैज्ञानिक तभी कहलाये जब वो कोई चमत्कारिक खोज करने में सफल हो या बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया जाए. एक विद्वान् की विद्वत्ता या scholarship इस पर निर्भर करती है की उसकी विषय पर कितनी गहरी समझ है. थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी की इतनी गहरी समझ उस समय भारत में भी गिने चुने लोगों को ही थी. प्रो० VVN ने बनारस में इस विषय पर एक ‘मत’ स्थापित किया और शांत स्वभाव वाले इस अध्यापक ने ऐसे छात्रों को पीएचडी कराई जिन्होंने आगे चल कर बड़ा नाम कमाया. दोनों सुपुत्र JVN और उनके भाई अनंत नार्लीकर भी इसके अपवाद नहीं जिन्हें VVN की अकादमिक छत्रछाया मिली हालाँकि इन्होंने पीएचडी देश के बाहर से की थी. प्रो० विष्णु वासुदेव नार्लीकर का देहांत 1 अप्रैल 1991 को हुआ. उन्हें “Grandpa of Relativity in India” कहा जाता है.

दूसरा नाम है गुजरात के प्रो० प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य. जन्म 23 मार्च 1918. इनके नाम से रिलेटिविटी में एक सूत्र प्रसिद्ध है जिसे कहा जाता है ‘Vaidya Metric’. मुंबई विश्वविद्यालय से MSc करने के बाद श्री वैद्य 1942 में प्रो० VVN के सानिध्य में काम करने के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय चले आये. आप नौकरी के उद्देश्य से या पीएचडी के लिए नहीं आये थे. जेब में कुछ पैसे और एक छः महीने की बिटिया को गोद में ले कर सिर्फ थ्योरी ऑफ़ जनरल रिलेटिविटी पर VVN के साथ काम करने आये थे. ऐसा समर्पण आपने कहीं देखा सुना है क्या? वे बनारस में सिर्फ दस महीने रहे, गंगाजल से बना भोजन किया और इसी अवधि में उन्होंने कुछ ऐसा खोज निकाला जो Vaidya Metric के रूप में अमर हो गया. इस सूत्र का वास्तविक महत्व और प्रत्यक्ष प्रमाण तब सामने आया जब साठ के दशक में अन्तरिक्ष में क्वेसर, पल्सर जैसी विचित्र वस्तुएं पता चलीं. इस सूत्र के महत्व को समझने के लिये एक विशाल तारे की कल्पना करें. एक बड़ा तारा निश्चित ही अपने समीप दिक्-काल की विमाओं को विकृत कर ज्यामिति बदल देगा और यदि उसमे से Radiation या तरंगे भी निकल रही हों तो ऐसी स्थिति में गुरुत्व कैसे काmम करेगा इसका समाधान इस सूत्र में है. बनारस से ‘आज’ नाम का अखबार आज भी निकलता है. इसी अखबार में गाँधी के आन्दोलन की खबर पढ़ते हुए श्री वैद्य के दिमाग में ये आईडिया आया. श्री वैद्य ने मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट में भाभा के साथ भी काम किया. कालांतर में पीएचडी भी की, गुजरात विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी रहे लेकिन तब तक वो प्रसिद्ध हो चुके थे. उन्होंने गुजरात में ‘गुजरात गणित मंडल’ नामक संस्था की स्थापना की और जवाहरलाल के हाथों उद्घाटित एक ऐसे विद्यालय में भी पढ़ाया जिसकी छत तक नहीं थी. एक अध्यापक कैसा होना चाहिये इसके बारे में श्री वैद्य एक डाक्यूमेंट्री में जगदीश चन्द्र बसु के Law of Teacher Education को याद करते हैं और बताते हैं की प्रो० बसु कहते थे की एक अध्यापक से सारी पुस्तकें छीन लो यदि फिर भी वह पढ़ाने लायक है तब वो अध्यापक है. दूसरा ये की एक अध्यापक को छात्र के सामने खुद एक रोल मॉडल बन कर दिखाना चाहिये ताकि वो छात्र अपने अध्यापक की नकल कर सके. अपने गुरु प्रो० विष्णु वासुदेव नार्लीकर को याद करते हुए प्रो० वैद्य ने लिखा है की जब Vaidya Metric पर पेपर छपा तो प्रो० नार्लीकर ने उस पेपर में सिर्फ वैद्य का नाम छपवाया क्योंकि सारी मेहनत वैद्य की थी. वो चाहते तो First author में अपना नाम दे सकते थे लेकिन उन्होंने वैद्य को पूरा श्रेय दिया. प्रो० प्रह्लाद चुन्नीलाल वैद्य और प्रो० नार्लीकर ने भारत में Indian Association for General Relativity and Gravitation (IAGRG) की स्थापना की. प्रो० वैद्य मार्च 2010 में दुनिया से चले गए. 

तीसरी विभूति का नाम है प्रो० अमल कुमार रायचौधुरी. उनके सहकर्मी और छात्र उन्हें प्यार से AKR या अमल बाबू बुलाते थे. आपका जन्म 14 सितम्बर  1923 को हुआ था. प्रो० रायचौधुरी के नाम से Raychaudhuri Equation प्रसिद्ध है. इस समीकरण को हिंदी में समझा पाना मेरे लिए संभव नहीं. लेकिन इसका महत्त्व बता सकता हूँ. आप जानते हैं की कैम्ब्रिज के प्रो० स्टीफेन हॉकिंग को आइंस्टीन के बाद दुनिया का सबसे महान वैज्ञानिक माना जाता है. ऑक्सफ़ोर्ड के प्रो० रॉजर पेनरोस और हॉकिंग दोनों ने कुछ प्रमेय सिद्ध किये थे जिनसे हमें ये पता चलता है की ब्रह्माण्ड का जन्म एक ‘व्यष्टि-बीज’ से हुआ था. वह बीज अत्यंत सघन और गर्म था. इन प्रमेयों को Penrose-Hawking Singularity Theorems कहा जाता है. इन प्रमेयों को सिद्ध करने के लिए Raychaudhuri Equation की जरुरत पड़ती है. रायचौधुरी समीकरण के बिना ये प्रमेय सिद्ध नहीं किये जा सकते थे. कुछ विद्वानों का ये भी मानना है की अगर प्रो० रायचौधुरी को इंग्लैंड-अमरीका में उन्नत गणितीय उपकरण सीखने का मौका मिलता तो वो उन प्रमेयों को भी खोज लेते जिनकी बदौलत हॉकिंग को इतनी प्रसिद्धि मिली. लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें ऐसा माहौल नहीं मिला. एम० एस० सी० करने के बाद उन्हें Indian Association for Cultivation of Science कलकत्ता में शोध की नौकरी मिल गई. उनसे कहा गया की प्रायोगिक भौतिकी (Experimental Physics) में शोध की नौकरी बचा के रखने लिए उन्हें सिर्फ दो पेपर प्रकाशित करने होंगे इससे ज्यादा काम नहीं है. लेकिन प्रो० रायचौधुरी को सैद्धांतिक भौतिकी में रूचि थी. उन्होंने अपना पठन-पाठन स्वयं चुपचाप जारी रखा और विपरीत परिस्थितियों में 1954 में रायचौधुरी समीकरण की खोज हुई. रायचौधुरी समीकरण बताता है की ‘व्यष्टि-बीज’ अथवा Singularity अव्यश्यम्भावी है. इसका पता भी तब चला जब अमरीका के प्रो० John Archibald Wheeler ने इसका संज्ञान लिया और 1959 में रायचौधुरी ने डी० एस० सी० डिग्री के लिए थीसिस सबमिट कर दी. सन 2005 में अमल बाबू भी दुनिया से चले गए और अपने पीछे सैकड़ों छात्र छोड़ गए जो उन्हें याद करते हैं.   

मेरा अनुरोध है की इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आप अपने बच्चों को बताएं क्योंकि आपके बच्चे आइंस्टीन का नाम जरुर सुनेंगे लेकिन रायचौधुरी, नार्लीकर और वैद्य का नाम शायद ही सुनें.
धन्यवाद.
✍
यशार्क पांडेय

बुधवार, 15 मई 2019

कौन थे राजा वीर विक्रमादित्य....

कौन थे राजा वीर विक्रमादित्य.....????

बड़े ही शर्म की बात है!!!
कि *महाराजा विक्रमादित्य* के बारे में देश को लगभग शून्य के बराबर ज्ञान है, जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था, विक्रम संवत जिनकी देन है, जिनके न्याय का डंका तीनों लोकों में बजता था देवता भी अपना न्याय *महाराजा विक्रमादित्य* से करवाते थे उनकी नयायप्रियता का कोई सानी नहीं था  नव रत्नों से उनका दरबार भरा रहता था,और  उनके द्वारा ही भारत में स्वर्णिम काल आया था, ऐसे महान राजा को भारतवर्ष भुलता जा रहा है ????
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उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन, जिनके तीन संताने थी, सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती, उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटा वीर विक्रमादित्य...
बहन मैनावती का विवाह धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर हुआ, जिनके एक पुत्र हुआ गोपीचन्द , आगे चलकर राज़ा गोपीचन्द ने श्री ज्वालन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और राज पाट छोड़ तपस्या करने जंगलों में चले गए, फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली,
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आज यह देश और यहाँ की संस्कृति केवल *महाराजा विक्रमदित्य* के कारण अस्तित्व में है।
अशोक मौर्य ने बौद्ध धर्म अपना लिया था और अहिंसक,(बिना शस्त्र की सेना) व बौद्ध बनकर 25 वर्ष राज किया था।
इस कारण विदेशियों के आक्रमण हुए, भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था, देश में बौद्ध और जैन हो गए थे।
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रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे, *महाराज विक्रमादित्य* ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया।
विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया।
*महाराजा विक्रमादित्य* के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तल ग्रंथ लिखा, जिसमें भारत का इतिहास लिखा है।
अन्यथा भारत का इतिहास क्या मित्रों हम भगवान् कृष्ण और राम को ही भूल चुके होते।
हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे।
उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए, राज अपने छोटे भाई वीर विक्रमदित्य को दे दिया , वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने लगे और आज उन्हीं के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है, हमारी संस्कृति बची हुई है
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*महाराज विक्रमादित्य* ने केवल धर्म ही नही बचाया...
उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाई, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम काल कहा जाता है।
*महाराजा विक्रमादित्य* के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यापारी सोने के वजन से खरीदते थे,
भारत में इतना सोना आ गया था कि *विक्रमादित्य* काल में सोने की सिक्के चलते थे , आप गूगल इमेज कर विक्रमदित्य काल के सोने के सिक्के देख सकते हैं।
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हिन्दू कैलंडर भी *राजा विक्रमादित्य* का स्थापित किया हुआ है (विक्रम संवत्)
आज जो भी ज्योतिष गणना है जैसे, हिन्दी सम्वंत, वार, तिथियाँ, राशि, नक्षत्र , गोचर आदि उन्ही के समय की रचना है, वे बहुत ही पराक्रमी, बलशाली और बुद्धिमान राजा थे ।

*महाराजा विक्रमादित्य* के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे, न्याय, राज सब धर्मशास्त्र के नियमों पर चलते थे।
*राजा विक्रमादित्य*  का काल राम राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनी और धर्म पर चलने वाली थी।  कलयुग में अयोध्या की खोज *राजा विक्रमादित्य* के द्वारा ही हुईं थीं,वेटिकन शिव मंदिर, काबा शिव मंदिर, उज्जेन शिव मंदिर,  आदि  मंदिरों का जीर्णोद्धार व  निर्माण करवाया गया है
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पर बड़े दुःख की बात है कि भारत के सबसे महानतम राजा के बारे में  वामपंथीयों का लिखा इतिहास भारत की जनता को झूठा ज्ञान देता है,  कृपया आप इसे अधिक से अधिक शेयर करें, ताकि देश जान सके कि सोने की चिड़िया वाले देश के राजा विक्रमादित्य कौन  थे ।।।।

बुधवार, 27 मार्च 2019

Youtube coaching for IIT

Youtube coaching for IIT 



If you know anyone in class 11 or 12, & interested in IIT preparation:

The IIT-Professor Assisted Learning (PAL) video lectures for Class XI and Class XII can be accessed on You Tube through the links shown below. Many faculty members from various IITs have contributed to these lectures. Prof. Ravi Soni from the Dept. of Physics, IIT Delhi is the national coordinator and IIT Delhi has coordinated this entire effort with funding from MHRD. Over 600 hours of lectures in Physics, Chemistry, Maths and Biology are available for students.

Pl. pass on the information to your friends/relatives and their needy children.

Biology: Channel 19
www.youtube.com/channel/UCqiFTyCxFFMAN_lhAzIkdpA/videos
Chemistry: Channel 20
www.youtube.com/channel/UC3Zv0XxBjYlWMjbMv8ODE8Q/videos
Mathematics: Channel 21
www.youtube.com/channel/UCfz4W0rG8HoyyrrK6qNc1rA/videos belonging
Physics: Channel 22
www.youtube.com/channel/UCwNr8peMxn8-Nc2V_RZsRvg/videos

These videos can also be accessed on Doordarshan Freedish DTH. Complete list of videos is available at (Channel 19,20,21 and 22)

www.swayamprabha.gov.in/index.php/ch_allocation

Student no need to attend tuitions anymore.. forward to all students..save their money ..stop tuition mafia..